जीएसटी इनपुट क्रेडिट – क्या इस समस्या का कोई हल है !!!

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भारत में जीएसटी लाया गया था चार मुख्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लाया गया था जिनमें से इनपुट क्रेडिट का निर्बाध या बाधा रहित होना सबसे बड़ा और प्रमुख उद्देश्य था. टैक्स बेस का बढना, राजस्व की अधिक प्राप्ती और टैक्स पर टैक्स लगना अर्थात कास्केडिंग इफ़ेक्ट को समाप्त करना अन्य बड़े उद्देश्य थे जो कि लगभग पूरे भी हो रहें हैं या अपने लक्ष की और अग्रसर है. अभी हमारी माननीय वित्त मंत्री महोदया ने बताया है कि जनवरी माह में जीएसटी का रिकोर्ड कलेक्शन हुआ है. लेकिन इनपुट क्रेडिट अभी भी बाधा रहित नहीं है.

जीएसटी में एक बड़ी कमी है और वह है इनपुट क्रेडिट का बाधा रहित नहीं होना और इसको लेकर डीलर्स की परेशानियां बढ़ती जा रही है और अब सराकर इस पर और भी सख्तियाँ करती जा रही है बिना यह सोचे कि खरीद और बिक्री में आने वाले मिस्मेच की सारी जिम्मेदारी क्रेता पर डालना एक व्यवहारिक अन्याय है क्यों कि विक्रेता रिटर्न देरी से भरता है, विक्रेता रिटर्न नहीं भरता है या विक्रेता कर नहीं जमा कराता है यह सब क्रेता के हाथ में नहीं होता है. इसके अतिरिक्त वह क्रेता विक्रेता से ऐसा करवा सके ऐसे अधिकार भी उसके पास नहीं है लेकिन यह अधिकार सरकार के पास तो है ही. वेट में भी यह समस्या थी लेकिन फिर जीएसटी तो वेट और सेंट्रल एक्साइज की समस्याएँ हल करने के लिए ही जीएसटी लाया गया था लेकिन इनपुट क्रेडिट की समस्या ना सिर्फ मौजूद है बल्कि और भी गंभीर हो चुकी है. आइये देखें कि जीएसटी की इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच की समस्या क्या है और अब बजट में इसमें कोई राहत मिलने की जगह और भी सख्त प्रावधान प्रस्तावित है.

जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट समस्या समाधान- कार्टन 1

एक डीलर अपने विक्रेता से माल खरीददता है उसमें वह माल के साथ जीएसटी का भुगतान भी करता है और अपने बिक्री पर एकत्र किये गए जीएसटी में से इस जीएसटी जो वह अपने विक्रेता को दिए गए जीएसटी, जो कि आईटीसी या इनपुट क्रेडिट कहलाता है, को घटा कर भुगतान करता है. इस प्रकार से वह अपने मार्जिन पर ही अरितिक्त कर का भुगतान करता है और यही जीएसटी का मूल सिद्धांत है.

अब मान लीजिये कि एक डीलर की इनपुट क्रेडिट पर इसलिए प्रतिबन्ध लगा दिया जाए कि उसके विक्रेता ने समय पर रिटर्न नहीं भरा है या कर का भुगतान नहीं किया है या कोई और त्रुटी की है तो फिर क्रेता के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो जाता है.

क्रेता का इस बात पर कोई वश तो नहीं है कि उसका विक्रेता समय पर कर जमा कराये और रिटर्न भी समय पर भरे. एक विक्रेता यदि अपना मासिक बिक्री का रिटर्न यदि 11 तारीख तक नहीं भरता है तो उसके क्रेता को उस माह में इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती है इस प्रकार उसकी कर देयता एकदम बढ़ जाती है.

उदहारण-1

आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए एक डीलर ने जनवरी माह में दूसरे डीलर से 1 करोड़ का माल खरीदा जिस पर 18% की दर से 18 लाख रुपए का भुगतान किया। अब इस माल को उसने 1करोड़ 10 लाख में बेचा और 19 लाख 80 हजार टैक्स वसूला।

अब उस डीलर को इस कर में से 18 लाख रूपये की इनपुट क्रेडिट घटाने के बाद 1 लाख 80 हजार रुपए कर का भुगतान करना है लेकिन यदि विक्रेता ने 11 तारीख तक अपना बिक्री का रिटर्न नहीं भरा है तो इनपुट नहीं मिलेगी और डीलर को पूरा 19 लाख 80 हजार रुपया कर केश में भरना होगा.

अब विक्रेता यदि अपना रिटर्न 11 के बाद भरता है तो क्रेता को यह क्रेडिट X अगले माह मिलेगी लेकिन ध्यान रखें कि अगले माह जो वह माल खरीदेगा उसकी भी क्रेडिट आएगी और इस तरह केश में भरा यह पैसा लंबे समय तक भी अटक सकता है।

हर केस में ऐसा हो जरुरी नहीं है लेकिन ऐसी एक संभावना बनती है.

आइये देखें अगले महीने की कहानी

आइये इसी उदहारण को आगे ले जाएँ कि यही डीलर फरवरी में भी 1 करोड़ का और माल खरीदता है और उसकी इनपुट क्रेडिट फिर 18 लाख रूपये हो जायगी और अब इसे यह क्रेता 1 करोड़ 10 लाख रूपये में बेचता है तो आउटपुट टैक्स 19.80 लाख होगा और टैक्स का भुगतान केवल 1.80 लाख रूपये होगा क्यों कि इस माह की इनपुट केडिट अब 18 लाख रूपये है. अब जो पिछले क्रेडिट 18 लाख रूपये नहीं आई है विक्रेता के देरी से रिटर्न भरने के कारण वह भी आ जायेगी और उससे यह 1.80 लाख रूपये समायोजित हो जाएगा और इसमें से फिर भी 16.20 लाख रुपया बचा रहेगा और अगले महीने भी यह कहानी दोहरे जायेगी इस प्रकार एक बार यदि बिना इनपुट के कर जमा हो गया तो उसकी वसूली पर ही क्रेता को बहुत समय लग जाएगा और उसकी वोर्किंग केपिटल लम्बे समय तक फंसी रहेगी.

जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट समस्या समाधान- कार्टन 2

यह एक मकडजाल है और यह कह देना कि देरी से भरे रिटर्न की क्रेडिट अगले मिल जायगी कोई इस समस्या का हल नहीं है.

जीएसटी एक वैल्यू एडिशन टैक्स है और एक डीलर को सिर्फ अपने वैल्यू एडिशन पर टैक्स देना होता है लेकिन कभी यदि उसे किसी माह में पूरी बिक्री पर कर देना पड़े तो उसकी वसूली में महीनों भी लग सकते हैं।

आइये देखें कि किस तरह से जीएसटी केवल वैल्यू एडिशन पर ही कर देना होता है :-

X ने 10 लाख रूपये का माल Y से खरीदा और मान लीजिये 18% की दर से उसने 1.80 लाख का भुगतान किया. इस प्रकार से इनपुट क्रेडिट 1.80 लाख रूपये है.

अब X इस माल को 11 लाख रूपये में बेच देता है तो उसका आउटपुट टैक्स 1.98 लाख रूपये हुआ है.

X को अब अपने आउटपुट टैक्स 1.98 लाख रूपये में से इनपुट क्रेडिट 1.80 लाख घटाने के बाद केवल 18 हजार ही कर जमा करना होता है.

आइये देखें यह 18 हजार रुपया क्या है ? देखिये कि X का मार्जिन 1 लाख रूपये है और इस पर 18% की दर से कर हुआ 18 हजार और यही जीएसटी है.

लेकिन अब इस मार्जिन पर टैक्स की जगह पूरी बिक्री पर ही कर का भुगतान करना पड़े तो आप वर्किंग केपिटल के बोझ की समस्या को समझ सकते हैं.

सरकार को रिटर्न नहीं भरने पर विक्रेताओं को चिन्हित कर उनसे कर भरवाना चाहिए और रिटर्न और कर भरने के लिए उनको मजबूर करना चाहिए और इसका दंड इनपुट क्रेडिट रोक कर क्रेताओं को देने का कोई औचित्य नहीं है क्यों कि क्रेताओं का इस पर कोई वश नहीं है जब कि सरकार के पास अधिकार है. यह वेट में भी होता था और यही समस्या जीएसटी में भी है तो फिर जीएसटी के आने से कोई सुधार क्यों नहीं हुआ.

सरकार क्रेताओं की यह समस्या देखने और इसका हल करने की जगह कानून और भी सख्त बनाती जा रही है जैसा कि अभी के बजट प्रस्तावों में है लेकिन यह सब जीएसटी के भविष्य के लिए ठीक नहीं है जिसमें विक्रेता की किसी भी गलती का पूरा दंड क्रेता को मिलना है. यह कह देना कि आप अपना विक्रेता सावधानी से चुनिए कोई व्यवहारिक हल नहीं है और भविष्य में विक्रेता क्या करेगा इसका ज्ञान पहले से ही क्रेता को हो जाए ऐसा भी संभव नहीं है.

सरकार को इस समस्या पर गहनता से विचार करना चाहिए और इनपुट क्रेडिट के मिस्मेच के लिए तुरंत क्रेता की इनपुट क्रेडिट रोक कर तुरंत सजा देने की जगह क्रेता और विक्रेता को कम से कम 90 दिन का समय दिया जाना चाहिए ताकि वे इस समस्या का समुचित हल करने के बाद जिसे भी कर के भुगतान की जरुरत है वो कर का भुगतान कर सके.

अभी इस समस्या का हल क्या है

अभी सरकार की और से कोई राहत की उम्मीद दिखाई नहीं देती है क्यों कि इस बजट में तो प्रस्तावित कानून और भी सख्ती की और संकेत करते हैं इसलिए व्यवहारिक रूप से इस समस्या का हल यह है कि क्रेता और विक्रेता आपस में बेहतर सामजस्य रखे और अपने GSTR -1 समय पर भरें. याद रखिये हर क्रेता किसी दूसरे डीलर के लिए विक्रेता हो सकता है.

इसलिए अब रिटर्न भरने में अनुशासन ही इस समस्या का हल है.

नए बजट में और भी सख्त प्रावधान प्रस्तावित है

आइये देखें अब बजट -2022 में इनपुट क्रेडिट को लेकर नये बजट में क्या प्रस्तावित है लेकिन यहाँ यह ध्यान रखे ये प्रावधान अभी लागू नहीं हो रहें है क्यों कि इसके लिए इनके लागू होने की तारीख सरकार अब घोषित करेगी. लेकिन ध्यान रखें कि यह तारीख घोषित करना भी केंद्र सरकार के हाथ में नहीं है क्यों कि ये प्रावधान राज्यों के जीएसटी कानून में भी आना है और इसके लिए राज्यों की विधानसभाओं से भी पास होना है.

लेकिन इन प्रस्तावों को समझना जरुरी है क्यों कि भविष्य में यही प्रावधान हमारे देश में व्यापार करने की दिशा तय करेगी :-

आइये देखें बजट-2022 में इनपुट क्रेडिट को लेकर और भी क्या नया प्रस्तावित संकेत है,देखिये ये अभी लागू नहीं होगा क्यों कि इसे अभी राज्यों की विधान सभा से भी पारित करवाना होगा और इसके बाद एक तारीख घोषित की जायेगी जब यह प्रावधान लागू होंगें. इनके लागू होने में अभी समय लगेगा लेकिन इन्हें भी जानना जरुरी है क्यों कि इसने ITC लेना भविष्य में और भी मुश्किल हो जाएगा )

आइये देखें बजट में तो और भी प्रावधान प्रस्तावित है जिनमें विक्रेता की कमियाँ या रिटर्न भरने या भुगतान करने में देरी होने या विक्रेता की किसी अन्य अधिसूचित “विशेषता” पर उस विक्रेता द्वारा दी जाने वाली क्रेता की इनपुट क्रेडिट पूरी या आशिक रोकना प्रस्तावित है :-

1. नए रजिस्ट्रेशन वाले डीलर द्वारा की गई बिक्री की इनपुट क्रेडिट- पूरी या को उसके क्रेता को उस “प्रारम्भिक अवधि” तक नहीं दी जाए जो कि सरकार द्वारा तय की जाए. मेरी राय में ऐसा प्रावधान लागू करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है लेकिन देखिये आगे क्या होता है. यदि यह प्रावधान आता भी है तो शायद कुछ अपवादों को साथ लाएगा ताकि नया व्यापार प्रारम्भ करने वाले सभी डीलर्स को कोई परेशानी नहीं हो. देखें इस सम्बन्ध में क्या प्रावधान आते है.

2. एक ऐसा विक्रेता अपने कर के भुगतान में चूक जाते हैं और यह चूक एक ऐसे समय तक जारी रहती है, जो बाद में निर्धारित किया जाएगा, तक जारी रहता है तो ऐसे विक्रेता द्वारा जारी बिक्री की इनपुट उसके खरीदारों को नहीं मिलेगी. कितने समय तक कर के भुगतान में चूक करने यह रोक लगेगी यह भी निर्धारित किया जाना बाकी है लेकिन इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि डीलर्स अपना कर समय पर जमा कराएँ और इसके लिए उनके क्रेता उन्हें “मजबूर” करें इसलिए उनकी अर्थात क्रेताओं की इनपुट क्रेडिट रोक ली जायगी.

3. एक ऐसा विक्रेता जिसका भुगतान किया गया कर उसके बिक्री के विवरण में दिखाये गए कर से एक निर्धारित प्रतिशत, जो बताया जाएगा, से कम हो. यह किसी डीलर के GSTR-1 में दिखाए गए कर और GSTR -3B में भुगतान किये गए के अंतर के सम्बन्ध में है और किसी डीलर के इस तरह का निर्धरित अंतर आता है तो फिर उसके क्रेता को इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी. यह अंतर किताना प्रतिशत से अधिक हो एवं कितने समय तक हो यह जब यह प्रावधान लागू होगा तब बताया जाएगा.

डीलर अपने GSTR-1 में दिखाई बिक्री के अनुसार कर का भुगतान भी करे इसके लिए यह प्रावधान लाया जा रहा है लेकिन इसके लिए भी क्रेडिट क्रेताओं की ही रोकी जायेगी.

4. एक विक्रेता जो एक निर्धारित समय के दौरान, जो बताया जायेगा, अपने को मिली निर्धारित इनपुट से अधिक क्लेम कर रहे हैं. देखिये इस समय आप जो GSTR-3B भर रहें है उसमें जो इनपुट क्रेडिट आपके GSTR-2B में आ रही है यह प्रावधान उसी से जुडा है. यदि कोई डीलर अपनी मिलने वाली क्रेडिट से अधिक लेता है और यह एक निर्धारित सीमा से अधिक यह अंतर रहता है और यह अंतर एक निर्धारित अवधि तक रहता है, तो फिर ऐसे विक्रेता द्वारा बेचे गए माल का इनपुट क्रेडिट उनके क्रेताओं को नहीं मिलेगी.

5. एक ऐसा विक्रेता जो कि अपने क्रेडिट लेजर से जितना अपना टैक्स भुगतान कर सकता है उससे ज्यादा भुगतान इस क्रेडिट लेजर से कर रहा है तो उसके क्रेता की कुछ शर्तों के साथ इनपुट क्रेडिट रोक ली जायेगी.

इसके लिए एक नई धारा 49 (12) लाई जा रही है जिसके तहत सरकार, जीएसटी कौंसिल की सलाह पर, एक सीमा तय करेगी अपने कर का भुगतान करते समय कोई डीलर अपने क्रेडिट लेजर से कितना कर चुका सकता है अर्थात यर्क निर्धारित सीमा के बाद उस डीलर को अपना कर क्रेडिट लेजर में पैसे होते हुए भी केश में चुकाना होगा. यह एक अप्राकृतिक बंधन है और जीएसटी की मूल भावना से मेल नहीं खाता है.

अभी भी एक रूल 86B बना हुआ है और अब तो कानून में भी एक और धारा 49(12) प्रस्तावित है जो इस रूल का समर्थन करती है.

लेकिन यदि कोई इस सीमा का उल्लंघन करता है तो उसके क्रेता की इनपुट क्रेडिट रोक लेने का भी यह अनोखा प्रावधान है जो फिर से क्रेताओं की परेशानी बढ़ाएगा.

6. इसके अतिरिक्त उन विक्रेताओं की श्रेणी निर्धारित की जायेगी जिनके द्वारा की गई बिक्री की इनपुट क्रेडिट उनके क्रेताओं को नहीं मिलेगी. इसके तहत नोटिफिकेशन के जरिये उन डीलर्स को या डीलर्स के प्रकार को चिन्हित किया जायगा जिनकी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी उनके क्रेताओं को.

इन प्रावधानों को लेकर सरकार का अपना पक्ष है कि वह कर को सुरक्षित करना चाहती है लेकिन अभी ही आईटीसी को लेकर डीलर्स परेशान है फिर यदि ये प्रस्ताव लागू हो गए तो व्यापार करने में और भी परेशानी आ सकती है लेकिन देखना होगा कि अंतिम रूप से ये प्रावधान किस तरह से आते हैं, इनमें समय अवधि और उल्लंघन की सीमा क्या रहती है.



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